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Monday, 9 May 2011

Live and let live

मूक पशुओं की सुनो पुकार
                            --- पुनीता जैन 
 बेकसूर पशुओं के दर्द का अहसास कीजिये,
 उनकी रक्षा के लिए कुछ तो प्रयास कीजिये |
 अपने को काँटा भी चुभ जाये तो होता है बड़ा दर्द,
 पर पशुओं के लिए क्यों हम हो जाते हैं बेदर्द |

  पशुओं के क़त्ल सरेआम हो रहे हैं,
 अब तो यांत्रिक बूचड़खाने भी तैयार हो रहे हैं |
 आज पशुओं को काटा जा रहा है, मांस निर्यात के लिए,
 इंसानियत को दफनाया जा रहा है, आर्थिक विकास के लिए |

  पशुओं की आह जब वातावरण में भर जाएगी,
   बदला लेने के लिए तब प्रकृति सामने आएगी |
 भूकम्प, बाढ़, सूखा, तूफान, सुनामी को झेलना होगा,
 पशुओं के दर्द और आह की कीमत का हिसाब तो, देना ही होगा |
   देना ही होगा ||
                                (09-05-2011)