Disable Copying

Monday, 4 June 2012

Environment Day

 

उपकार के बदले अत्याचार -(कविता-पर्यावरण दिवस, 5-6-2012)

 

पर्यावरण हमेशा रहा है हमारा मित्र,

पर हमने बिगाड़ दिया है उसका चित्र |


पर्यावरण ने मनुष्य को दिया प्राकृतिक सम्पदा का उपहार,

पर बदले में मनुष्य ने पर्यावरण पर किया अत्याचार |

मनुष्य ने अपने स्वार्थ में पर्यावरण की धरोहर का किया तिरस्कार,

इसकी वजह से आज मनुष्य खुद हो रहा है बेबस और लाचार ।

पर्यावरण ने हमें दिया नदियों, झरनों, झीलों का शुद्ध पानी,

पर हमने उसको प्रदूषित करके कर डाली अपनी ही हानि ।

नदियों को नाला बना दिया, भूमिगत जल को सुखा दिया,

मनुष्य के अन्धे स्वार्थ ने उसे पीने के शुद्ध पानी को भी तरसा दिया ।

पर्यावरण के आभूषण – पेड़ों, वनों, जंगलों को काट दिया गया,

सांस लेने के लिए मिली हवा को भी जहरीला बना दिया गया ।

प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन किया गया,

भ्रष्टाचार के खेल में पर्यावरण को भुला दिया गया ।


विभिन्न जीव जन्तु भी हैं पर्यावरण के अंग,

पर बढ़ते प्रदूषण ने उनका जीवन किया बेरंग ।

गौरैया, गिद्ध, अन्य  पक्षी,जलीय जन्तु समाप्ति की ओर हैं अग्रसर,

मनुष्य भी इसके प्रभाव से नहीं है बेअसर ।

पर्यावरण का सन्तुलन यदि ऐसे ही बिगड़ता रहेगा,

मनुष्य के जीवन पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता रहेगा ।

आज पीने को शुद्ध पानी नहीं, सांस लेने को स्वच्छ हवा नहीं,

प्रदूषण से मनुष्य को ऐसे रोग मिले, जिनकी दवा नहीं ।

पर्यावरण  का नुकसान और  शोषण रुकना चाहिए,

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को जागरूक होना चाहिए ।

...

————————————————————————

नम्र निवेदन —

चिलचिलाती गर्मी में पशु पक्षी भी हैं बेहाल और प्यास से व्याकुल,

अपनी बालकनी, छत,  गली आदि में पानी का बर्तन रखकर

असहाय जीवों की जान बचाएं ।

जीव दया कर अक्षय पुण्य कमायें           ——- धन्यवाद

Saturday, 26 May 2012

Joy and Sorrow


दुख के काँटे (कविता)

दुख में सुख की बहुत याद आती है,

धैर्य और साहस की परीक्षा हो जाती है ।

आग में तपकर ही सोने में चमक आती है,

दुख को सहकर ही किस्मत को चुनौती दी जाती है ।


दुख सुख का महत्व समझा जाता है,

दूसरों के दर्द का भी अहसास करा जाता है ।

दुख शत्रु और मित्र की पहचान करा देता है,

अपने और पराये की परख बता देता है ।



सुख छिनने का हमेशा डर लगा रहता है,

दुख में व्यक्ति इस बात से निर्भय बना रहता है ।

सुख जाता है तो दुख दे जाता है,

दुख जाता है तो सुख दे जाता है ।


पतझड़ के बाद बसन्त की बहार भी आती है,

तपती गर्मी के बाद मानसून की बौछार भी आती है ।

अँधेरी रात के बाद उजाले की भोर भी आती है,

दुख और कष्टों के बाद सुख की झंकार भी आती है ।


उजाले के बिना जीवन में अँधेरा हो जाता है,

पर अँधेरा ही उजाले का महत्व समझाता है ।

सुख  दुख जीवन के साथ चलते हैं,

फूलों के साथ कांटे भी मिलते हैं ।

Sunday, 22 April 2012

Protect Trees, Save Earth (22-April-2012)

Love plants and trees,
As they make air clean and pollution free

They absorb Carbon Di Oxide,
But emit oxygen and makes our breath glide.


They provide us fruits and food grain,
without trees, life is like a body without brain.

They are invaluable gifts of nature,
They seem like a profit without expenditure,

Benefits of trees are uncountable for human life,
A person can't repay it, even during his whole life.

Treat trees as a true friend,
protect them else human life will come to an end.

Sunday, 15 April 2012

Value of Life


                 जिन्दगी का मूल्य 

कानों में इयरफ़ोन लगाकर सड़कों और रेलवे लाइन पर,
चलते हुए अपनी जान क्यों गंवाते हैं लोग ?
शादी की खुशी में लापरवाही से फायर कर,
खुशी के माहौल को गम में क्यों बदल डालते हैं लोग ?
गाड़ियों को तेज रफ़्तार से दौड़ा कर,
अपनी और दूसरों की जान क्यों ले डालते हैं लोग ?
दिन रात ये खबरें आती हैं फिर भी,
क्यों नहीं सावधान और जागरूक हो पाते हैं लोग ?
अपनी और दूसरों की जिन्दगी छीन कर,
अनेक घरों और परिवारों में अँधेरा क्यों कर जाते हैं लोग ?
गुस्से में नियंत्रण खो कर,
क्यों दूसरों की हत्या कर देते हैं लोग ?
निराशा और तनाव में आत्महत्या कर,
क्यों अपना मनुष्य जीवन खो देते हैं लोग ?
शराब के नशे में गाड़ी चलाकर,
अनेकों जिंदगियों को क्यों लील जाते हैं लोग ?
ड्राइविंग सीट पर बैठ कर, क्यों सो जाते हैं लोग ?
भागदौड़, जल्दी - जल्दी, इस जल्दबाजी में,
क्यों जानें दाँव पर लगाते हैं लोग ?
समय तो किसी के लिए नहीं ठहरता, पर समय की जल्दी में,
जिन्दगी के समय को हमेशा के लिए क्यों ठहरा जाते हैं लोग ?
                                                       (22 – Feb – 2012)

Monday, 9 May 2011

Live and let live

मूक पशुओं की सुनो पुकार
                            --- पुनीता जैन 
 बेकसूर पशुओं के दर्द का अहसास कीजिये,
 उनकी रक्षा के लिए कुछ तो प्रयास कीजिये |
 अपने को काँटा भी चुभ जाये तो होता है बड़ा दर्द,
 पर पशुओं के लिए क्यों हम हो जाते हैं बेदर्द |

  पशुओं के क़त्ल सरेआम हो रहे हैं,
 अब तो यांत्रिक बूचड़खाने भी तैयार हो रहे हैं |
 आज पशुओं को काटा जा रहा है, मांस निर्यात के लिए,
 इंसानियत को दफनाया जा रहा है, आर्थिक विकास के लिए |

  पशुओं की आह जब वातावरण में भर जाएगी,
   बदला लेने के लिए तब प्रकृति सामने आएगी |
 भूकम्प, बाढ़, सूखा, तूफान, सुनामी को झेलना होगा,
 पशुओं के दर्द और आह की कीमत का हिसाब तो, देना ही होगा |
   देना ही होगा ||
                                (09-05-2011)